लेखनी कहानी -17-Oct-2022... श्राद्ध....एक रीत ये भी...!!
अरी बहू जल्दी जल्दी हाथ चला पंडित जी आते ही होंगे..।
जी मम्मी.. सब तैयार हैं.. बस पूरी तलनी हैं..।
हां तो शुरू कर दे.. किश्ना बस आता ही होगा पंडित जी को लेकर..।
जी मम्मी..।
किचन में एक तरफ़ जहां किषन की पत्नी पूरी तल रहीं थीं.... वही दूसरी तरफ़ उसकी सास मधुमती एक बड़ा सा टिफिन पैक कर रहीं थीं..। तभी आठ नौ साल का बबलू किचन की तरफ आया और बोला :- वाह माई... आज तो मस्त खुश्बू आ रहीं हैं... हलवे की, खीर की, वाह गर्मागर्म पूरी भी.... माई मुझे भी दे ना.... हलवा और पूरी...।
मधुमती :- अरे रुक जा छोरे.... खाना देखकर तेरी तो लाड़ टपकने लगती हैं...। सब मिलेगा पर पहले पंडित को आ जाने दे...।
पंडित..... क्यूँ... उसको क्यूँ खिला रहे हो आज...!
मधुमती कुछ जवाब देतीं इससे पहले ही दरवाजे के बाहर से बाइक के हार्न की आवाज आई...। मधुमती हाथ में पानी का लौटा लेकर दौड़ती हुई उस तरफ़ गई....।
पंडित बाइक से एक बड़ा सा थैला लेकर उतरे और भीतर की ओर आने लगे..। मधुमती ने उनके दरवाजे की चौखट पर पहले पैर धुलाएं फिर उनके पैर छूकर आदर स्वरूप भीतर ले आई...। किषन उनके पीछे पीछे उनका थैला उठाऐ भीतर तक आया..। एक कमरे के भीतर आकर वो रुके। मधुमती ने कमरे के फर्श पर आलिशान कशीदाकारी किया हुआ गालिचां बिछाया..। किषन ने थैला भी उनके सम्मुख रख दिया...। मधुमती ने पहले से तैयार की हुई आरती की थाली ली और पंडित की आरती उतारी फिर उन्हें बैठने को कहा..।
पंडित के बैठते ही उसने अपनी बहू को आवाज लगाई.. अरी बहू भोजन ले आ..।
किषन की पत्नी भोजन की थाली ले आई...। जिसमें पूरी सब्जी के अलावा खीर, हलवा, दाल, चावल, सूखे मेवे और ताजे फल रखें हुए थे..। भोजन आते ही पंडित ने भोजन खाना शुरू किया... कुछ चार पांच कौर खाने के बाद पंडित ने अपने थैले में से एक टिफिन निकाला और बचा हुआ खाना उसमें किषन को कहकर पैक करवा दिया...। मधुमती के इशारा करने पर उसकी बहू पहले से किचन में पैक किया हुआ टिफिन भी ले आई... वो भी पंडित को दिया गया..। उसके अलावा पंडित को एक पांच मीटर सूती कपड़ा, पांच सौ रुपये और एक चप्पल भेंट स्वरूप दी गई..।
सब कुछ अपने थैले में डालकर पंडित जी सभी को आशीर्वाद देकर किषन के साथ बाइक पर बैठकर अपने अगले गंतव्य की ओर चल दिए..।
उनके जाते ही बबलू बोला माई अब तो मुझे खाने को दे दे..।
मधुमती :- जा बहू अब इस दानव को भी भोग लगा दे... ये झूठे बर्तन भी लेती जा और मुझे भी थोड़ी खीर कटोरे में देकर जा..।
उनकी बहू ने अपने बेटे बबलू को वही रुकने को बोला और खुद झूठे बर्तन लेकर किचन में आई..। वहाँ से बबलू और अपनी सास के लिए खाने की सामग्री ले आई..।
एक कौर खाते ही बबलू बोला :- माई... आज कुछ खास हैं क्या..। ये पंडित क्यूँ आया था..।
तभी अब तक खामोश बैठी किषन की पत्नी बोलीं :- आज तेरी दादी की सासु माँ का श्राद्ध हैं...।
श्राद्ध.... वो क्या होता हैं माई...!
जो लोग मर जाते हैं ना फिर उनको तरह तरह के पकवान बना कर खिलाए जाते हैं...।
मरे हुवे लोग... वो ये सब कैसे खाते हैं माई..?
ये जो अभी पंडित आए थे ना उनको खिलाकर..।
माई तु मेरे साथ मजाक कर रहीं हैं क्या...। पंडित तो खाली चखकर गया... उसने कुछ भी ठीक से खाया कहां... सब तो अपने थैले में डाल दिया..।
मधुमती बीच में बोलते हुवे :- अरे बड़बोले तु चुप करके अपनी पूरी खा....। पंडित को बहुत घरों में जाना होता हैं इसलिए सबके घर से थोड़ा थोड़ा खाते हैं..।
बबलू :- ओहह इसका मतलब सब मरे हुवे लोगों के लिए पंडित ही खाना खाते हैं...। माई कल अगर दादी मर जाएगी फिर भी हम ऐसे ही पंडित को खिलाएंगे...।
हाँ बेटा... अगर मैं मर गई तो भी...।
लेकिन माई दादी के तो दांत ही नहीं हैं... वो तो पूरी खा ही नहीं सकती... फिर पंडित को सिर्फ खीर खिलाएंगे क्या...?
नहीं बेटा... पंडित को तरह तरह के हर तरह के पकवान खिलाएंगे जाएंगे... क्योंकि जिंदा इंसान खाए ना खाए... मरे हुवे इंसान को जरूर खिलाना चाहिए..। जीते जी चाहें हम उन्हें एक रुपया भी ना दे लेकिन मरे हुए को नोट जरूर भेजने चाहिए... जिंदा इंसान के पैरों में चप्पल हो ना हो... तन ढकने के लिए कपड़ा हो ना हो... लेकिन मरने के बाद उनकी हर चीज का ध्यान रखना चाहिए..।
मधुमती की बहू जब ये बातें कह रहीं थीं तब मधुमती अचानक खीर खाते खाते रुक गई और सोच में पड़ गई...। कुछ क्षण बाद वो बोलीं :- क्यूँ री.... तु मुझे ताना मार रहीं हैं क्या..!
नहीं मांजी.... मैं तो सच कह रहीं हूँ....। एक बार आप सोचकर देखना मां जी क्या मैं कुछ गलत कह रहीं थीं...।
इतना कहकर मधुमती की बहू किचन में चली गई..। उसके जाने के बाद मधुमती विचार करने लगी.... सच ही तो कहकर गई बहू... जीते जी मैंने अपनी सास का जीना हराम कर दिया था.. उठते बैठते सिर्फ गालियाँ देतीं थीं..। कभी उसको ढंग का खाना नहीं खाने दिया... हमेशा खिचड़ी पकड़ा देतीं थीं...। ना कभी अच्छा खाना दिया...ना ठिठुरती ठंडी रातों में तन ढकने के लिए कंबल...।ऐसे ही ठिठुर ठिठुर कर वो मर गई..। सच हैं.... मैने उनके साथ बहुत गलत किया...। बहू बिल्कुल ठीक कहकर गई.... सुख देना हैं तो जीते जी देना चाहिए... मरने के बाद ये आडंबर क्यूँ..!! मुझे माफ़ करना भगवन.... गलती तो मुझसे हुई हैं...। मैं अपनी हर गलती की माफ़ी मांगती हूँ....।
मैं इस कहानी से यह नहीं कहती की पंडितों को खिलाना या पितरों की पूजा गलत हैं... मैं सिर्फ इतना कहना चाहतीं हूँ की अगर इंसान को जीते जी हम उन्हें खुशियाँ दे.. उन्हें आजादी दे.. उनका ख्याल रखें... तो वो सच्चे दिल से श्राद्ध का भोग लगाएंगे..। फिर भी कुछ गलत लगा हो तो क्षमा करें...।
Supriya Pathak
09-Dec-2022 09:25 PM
Bahut khoob 🙏🌺
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सृष्टि सुमन
08-Dec-2022 11:47 AM
Behtarin rachana
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Raziya bano
06-Dec-2022 06:02 PM
Shaandar
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